शनिवार, 31 मई 2008

नीद नही आती मुझे

उजाले में नहीं आती है,नींद मुझे
चुभता है,यह फिल्प्स आँखों में
सिकोड़कर बंद कर लू आँखें तो
दिखता है गोधरा का सच मुझे,
लाल हो जाती है आँखें,मांस के लोथड़ों से
तड़पाकर गिरते पशु महोबा के खेत में
विदर्भ की फटी धरती पर किसान का खून सना
गोलियों के छर्रे पर नंदीग्राम का सच लिखा
आँखें ढ़कता हूँ,कपड़े से जब मैं
ओखली सा पेट लेकर,नंगों की एक फौज खड़ी
डर कर आँखें खोलता हूँ,जब मैं-
दिखता है उजाल भारत उदय मुझे
बंद कर लू उंगलियों से जो कान के छेदों को
बिलकिश की चीखों से कान फटता मेरा
किसानों की सिसकियाँ चित्कारती है क्यों मुझे?
शकील के घर सायरन का शोर है,
फौज़ के बूट जैसे मेरे सर पर है,
चक्रसेन के कटते सर की खसखसाहट चूभती है,
अब उजाले में नींद मुझसे उड़ती है।


· पंकज उपाध्याय

मंगलवार, 20 मई 2008

ब्रेकिंग न्यूज़

ब्रेकिंग न्यूज़ ,ब्रेकिंग न्यूज़
चला दो एक और टिकर
अरे रेप हुआ है,रेप
खेल लो आधे घंटे मेरी अस्मत का खेल
मेरे नोचे जाने का विजुअल भी है
'बाईट' भी है
लेलो 'फोनो 'कानून 'के दलालों से
लगा दो मुझपर बदचलनी का आरोप
की बहुत छोटे थे मेरे कपड़े
मत बताना किसी से की मुझे चीरने वाले की नजर थी कितनी संकुचित
देखा उसने भी था मेरी छाती को
दिखाया तुमने भी मेरी छाती को
नोचा था मेरे चमड़े को जिस जगह से उसने
शोट ओके हुआ है ,खबर है वही
मेरी चीखो से बढता है मीटर तुम्हारा टी आर पी का

सोमवार, 19 मई 2008

हकीकत नही दिखती

शून्य पटल की सोच मेरी
अब कपोलों मे नही बसती
खुली आंखो से अब मुझको
दुनिया की हकीकत नही दिखती
बंद कर लेता आँखे मै
जब किसीकी अस्मत लुटे
विस्थापन का दर्द झेलते
लोगो का जब घर लुटे
न देखता हू मै उनको जो
खाली पेट रात जगे
अकुलाते ,चित्कारते बच्चे
जब भूखी माँ ने थे जने
उभरी हड्डी ,पिचके गाल
भिखारी से दिखते है किसान
न देखता हू मैं अब बाहर
अपने ऑफिस के गलियारों से
दंगो की आड़ मे जले उन लोगो के घर वालो को
कुछ बंजर भूमि ,भूखे लोग बस खड़े है चोराहो पर
भागती सड़क ,चमकते माल
यही दिखते है सुबहो शाम ,.बाकि हकीकत नही दिखती

रविवार, 18 मई 2008

अब रूठ के क्या होगा

जमाना दर्द का हो और हम मनाने जाए ,ये मुफलिस वक्त ही है शायर जो नज्म प्यार के पड़ता है .इस भाग दौड़ की जिन्दगी हर वक्त हम लोग आहत हो जाते है .आज जिन्दगी का दर्द इतना बड़ा लगता है की लोग इस दर्द को छूपा नही पाते,वाक्क्त बे वक्त हम अक्सर हमारे आंसू बिना दर्द के ही छलकजाते है . इन्ही आंसू को सँभालते और सजोते है हम .आहत जिनसे हुए हो आप उन्हें जताने के खातिर ये ब्लॉग है की दर्द का उफान हल्का नही होता ,दर्द जो निकला है दिल से आंसू बनकर .