रविवार, 18 मई 2008

अब रूठ के क्या होगा

जमाना दर्द का हो और हम मनाने जाए ,ये मुफलिस वक्त ही है शायर जो नज्म प्यार के पड़ता है .इस भाग दौड़ की जिन्दगी हर वक्त हम लोग आहत हो जाते है .आज जिन्दगी का दर्द इतना बड़ा लगता है की लोग इस दर्द को छूपा नही पाते,वाक्क्त बे वक्त हम अक्सर हमारे आंसू बिना दर्द के ही छलकजाते है . इन्ही आंसू को सँभालते और सजोते है हम .आहत जिनसे हुए हो आप उन्हें जताने के खातिर ये ब्लॉग है की दर्द का उफान हल्का नही होता ,दर्द जो निकला है दिल से आंसू बनकर .

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