tag:blogger.com,1999:blog-14557135052572622112024-03-13T23:49:49.787-07:00आहतPANKAJ UPADHYAYhttp://www.blogger.com/profile/02698388684391261975noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-1455713505257262211.post-47420289020002865082008-09-22T02:47:00.000-07:002008-09-22T02:51:13.605-07:00मेरा सितारा<a href="http://avadhnama.blogspot.com/2008/09/blog-post_10.html">मेरे हिस्से का भारत उदय</a><br />बिहार की बाढ़ मे हर बार बह जाने वाले सपनो की भरपाई हेलीकॉप्टर मे बाते कर कुछ पैकेट निचे फेंक कर पुरे कर दिए जाते है ।बिना बिहार गए मुझ जैसे लोग कुछ कालम लिख कर या कविता गाकर सब ख़त्म कर देते है ।लेकिन बाढ़ की विभीषिका को बिना आँखों मे समेटे ही हम आँखों से पानी गीराते है ।मुझसे भी कुछ ऐसे ही पानी छलका है चाहे तो आंसू समझे या पानी ।आसमान की ओर टकटकी लगाए आँखेबादलो की ओट मे छिपे तारे को घूरती है । ऊपर तने बादलो से घने ,बीडी के छले उड़ रहे हैउन थिथले टूटे बादलो को जोड़ने की खातिरजो उन लाशो के दुर्गन्ध से टूट रहे है ।रात के इस चीखते सन्नाटे मे,झिगुरो की तन मे कुत्तो की आवाजेपुराने मकानों का श्मसान ,जिसमे मौत का धुआ तक नही उड़ रहाजलती हुई लो सिर्फ़ आँखों मे टिमटिमा रहीपूछती है उस तारे से जो निरुतर है ।दोनों गावो के कुत्ते भोकते है ,शायद वो रास्ता जानते हैइस डूबी सड़क से निकलने का ।बीडी की फूंक पेट तक भरी हुई ,अगर उदर के लोथडे साथ देते तो पी जाता पुरा कोसीमुह से निकलता धुआ जिसमे कोसी की पल्वित करह है .पास ही मरे रिश्ते के शव को चाटता कुत्ता ,अभी भी प्यासा है ,कोसी की तरहघूरते -घूरते चीख पड़ता है मेरा कंठ उस सितारे परयह वही चमकता सितारा है ,मधुबनी ,सहरसा ,पुरनिया का जिसकी रौशनी मे ये मातमी सन्नाटा हांफ रहा है ,और पूछ रहा है मेरे हिस्से का <strong>भारत उदय</strong> कब हो रहा हैPANKAJ UPADHYAYhttp://www.blogger.com/profile/02698388684391261975noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1455713505257262211.post-71305764956202682642008-06-14T00:31:00.000-07:002008-06-14T00:36:43.054-07:00मेरे सपनेमेरे सपने<br /><br /> हाथों में रेत के कुछ चिपके कण<br /> ये याद दिला रहे कि कुछ वक्त पहले<br /> हाथों में घर बुनने के सपने थे।<br /> आँसूओ के बूंदो से चिपकी रेत<br /> कुछ याद दिला देती है,कि कही<br /> विकास की इक आंधी चली है<br /> और मुझ आम इंसान के हाथ से रेत उड़ जाती है.<br /> उड़ जाते है मेरे सपने,मेरे जज्बा़त<br /> अब मेरी बेबस गरीबी को कोई आकार नहीं मिलेगा<br /> मेरे सर पर घर का भार नहीं रहेगा<br /> मेरे अरमानों और एहसास़ की रेत अब<br /> चिपकी है लक्ज़री़ कार के टायर से<br /> ऐसे ही मेरे अरमान आँखों में पलते रहे<br /> और विकास के बादलों संग उड़ गये<br /> न मिल सकी मुझे खुद की जिन्दगी<br /> वक्त उधार की मौत में लिपटा रहा<br /> कोई सूचकांको से कर रहा मेरे दिल की धड़कनों का फैसला,<br /> मेरे सांसो के सिसक अब उन पर है टिकी<br /> अब वही करते है मेरे दिन-रात का फैसला<br /> खुद को सेक्टरों में और हमें कैम्पों में बांट कर<br /> वही मुझे सपने दिखाते और तो़ड़ते हैं।<br /> <br />· पंकज उपाध्यायPANKAJ UPADHYAYhttp://www.blogger.com/profile/02698388684391261975noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1455713505257262211.post-57058234321853912372008-05-31T01:43:00.000-07:002008-05-31T01:44:35.278-07:00नीद नही आती मुझेउजाले में नहीं आती है,नींद मुझे<br />चुभता है,यह फिल्प्स आँखों में<br />सिकोड़कर बंद कर लू आँखें तो<br />दिखता है गोधरा का सच मुझे,<br />लाल हो जाती है आँखें,मांस के लोथड़ों से<br />तड़पाकर गिरते पशु महोबा के खेत में<br />विदर्भ की फटी धरती पर किसान का खून सना<br />गोलियों के छर्रे पर नंदीग्राम का सच लिखा<br />आँखें ढ़कता हूँ,कपड़े से जब मैं<br />ओखली सा पेट लेकर,नंगों की एक फौज खड़ी<br />डर कर आँखें खोलता हूँ,जब मैं-<br />दिखता है उजाल भारत उदय मुझे<br />बंद कर लू उंगलियों से जो कान के छेदों को<br />बिलकिश की चीखों से कान फटता मेरा<br />किसानों की सिसकियाँ चित्कारती है क्यों मुझे?<br />शकील के घर सायरन का शोर है,<br />फौज़ के बूट जैसे मेरे सर पर है,<br />चक्रसेन के कटते सर की खसखसाहट चूभती है,<br />अब उजाले में नींद मुझसे उड़ती है।<br /><br /><br />· पंकज उपाध्यायPANKAJ UPADHYAYhttp://www.blogger.com/profile/02698388684391261975noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1455713505257262211.post-39425719453452365962008-05-20T00:09:00.000-07:002008-05-20T00:21:34.730-07:00ब्रेकिंग न्यूज़ब्रेकिंग न्यूज़ ,ब्रेकिंग न्यूज़<br />चला दो एक और टिकर<br />अरे रेप हुआ है,रेप<br />खेल लो आधे घंटे मेरी अस्मत का खेल<br />मेरे नोचे जाने का विजुअल भी है<br /><span class="">'बाईट'</span> भी है<br />लेलो 'फोनो 'कानून 'के दलालों से<br />लगा दो मुझपर बदचलनी का आरोप<br />की बहुत छोटे थे मेरे कपड़े<br />मत बताना किसी से की मुझे चीरने वाले की नजर थी कितनी संकुचित<br />देखा उसने भी था मेरी छाती को<br />दिखाया तुमने भी मेरी छाती को<br />नोचा था मेरे चमड़े को जिस जगह से उसने<br />शोट ओके हुआ है ,खबर है वही<br />मेरी चीखो से बढता है मीटर तुम्हारा टी आर पी काPANKAJ UPADHYAYhttp://www.blogger.com/profile/02698388684391261975noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1455713505257262211.post-43978276581577366902008-05-19T23:52:00.000-07:002008-05-20T00:05:34.269-07:00हकीकत नही दिखती<span class="">शून्य </span>पटल की सोच मेरी<br />अब कपोलों मे नही बसती<br /><span class="">खुली आंखो से अब मुझको </span><br /><span class="">दुनिया की हकीकत नही </span>दिखती<br />बंद कर लेता आँखे मै<br />जब किसीकी अस्मत लुटे<br />विस्थापन का दर्द झेलते<br />लोगो का जब घर लुटे<br />न देखता हू मै उनको जो<br />खाली पेट रात जगे<br />अकुलाते ,चित्कारते बच्चे<br />जब भूखी माँ ने थे जने<br /> उभरी हड्डी ,पिचके गाल<br />भिखारी से दिखते है किसान<br />न देखता हू मैं अब बाहर<br />अपने ऑफिस के गलियारों से<br />दंगो की आड़ मे जले उन लोगो के घर वालो को<br />कुछ बंजर भूमि ,भूखे लोग बस खड़े है चोराहो पर<br />भागती सड़क ,चमकते माल<br />यही दिखते है सुबहो शाम ,.बाकि हकीकत नही दिखतीPANKAJ UPADHYAYhttp://www.blogger.com/profile/02698388684391261975noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1455713505257262211.post-83582424122767980942008-05-18T23:37:00.000-07:002008-05-18T23:48:47.601-07:00अब रूठ के क्या होगाजमाना दर्द का हो और हम मनाने जाए ,ये मुफलिस वक्त ही है शायर जो नज्म प्यार के पड़ता है .इस भाग दौड़ की जिन्दगी हर वक्त हम लोग आहत हो जाते है .आज जिन्दगी का दर्द इतना बड़ा लगता है की लोग इस दर्द को छूपा नही पाते,वाक्क्त बे वक्त हम अक्सर हमारे आंसू बिना दर्द के ही छलकजाते है . इन्ही आंसू को सँभालते और सजोते है हम .आहत जिनसे हुए हो आप उन्हें जताने के खातिर ये ब्लॉग है की दर्द का उफान हल्का नही होता ,दर्द जो निकला है दिल से आंसू बनकर .PANKAJ UPADHYAYhttp://www.blogger.com/profile/02698388684391261975noreply@blogger.com0