शनिवार, 14 जून 2008

मेरे सपने

मेरे सपने

हाथों में रेत के कुछ चिपके कण
ये याद दिला रहे कि कुछ वक्त पहले
हाथों में घर बुनने के सपने थे।
आँसूओ के बूंदो से चिपकी रेत
कुछ याद दिला देती है,कि कही
विकास की इक आंधी चली है
और मुझ आम इंसान के हाथ से रेत उड़ जाती है.
उड़ जाते है मेरे सपने,मेरे जज्बा़त
अब मेरी बेबस गरीबी को कोई आकार नहीं मिलेगा
मेरे सर पर घर का भार नहीं रहेगा
मेरे अरमानों और एहसास़ की रेत अब
चिपकी है लक्ज़री़ कार के टायर से
ऐसे ही मेरे अरमान आँखों में पलते रहे
और विकास के बादलों संग उड़ गये
न मिल सकी मुझे खुद की जिन्दगी
वक्त उधार की मौत में लिपटा रहा
कोई सूचकांको से कर रहा मेरे दिल की धड़कनों का फैसला,
मेरे सांसो के सिसक अब उन पर है टिकी
अब वही करते है मेरे दिन-रात का फैसला
खुद को सेक्टरों में और हमें कैम्पों में बांट कर
वही मुझे सपने दिखाते और तो़ड़ते हैं।

· पंकज उपाध्याय

2 टिप्‍पणियां:

jasvir saurana ने कहा…

bhut hi sundar rachana.badhai ho. please aap apna word verification hata le taki humko tipani dene mei aasani ho.

बेनामी ने कहा…

bahut hi khoob.aam insaan ki peeda ko bahut hi khoobsurati ke saath panktiyo main dhaala hai.