सोमवार, 22 सितंबर 2008

मेरा सितारा

मेरे हिस्से का भारत उदय
बिहार की बाढ़ मे हर बार बह जाने वाले सपनो की भरपाई हेलीकॉप्टर मे बाते कर कुछ पैकेट निचे फेंक कर पुरे कर दिए जाते है ।बिना बिहार गए मुझ जैसे लोग कुछ कालम लिख कर या कविता गाकर सब ख़त्म कर देते है ।लेकिन बाढ़ की विभीषिका को बिना आँखों मे समेटे ही हम आँखों से पानी गीराते है ।मुझसे भी कुछ ऐसे ही पानी छलका है चाहे तो आंसू समझे या पानी ।आसमान की ओर टकटकी लगाए आँखेबादलो की ओट मे छिपे तारे को घूरती है । ऊपर तने बादलो से घने ,बीडी के छले उड़ रहे हैउन थिथले टूटे बादलो को जोड़ने की खातिरजो उन लाशो के दुर्गन्ध से टूट रहे है ।रात के इस चीखते सन्नाटे मे,झिगुरो की तन मे कुत्तो की आवाजेपुराने मकानों का श्मसान ,जिसमे मौत का धुआ तक नही उड़ रहाजलती हुई लो सिर्फ़ आँखों मे टिमटिमा रहीपूछती है उस तारे से जो निरुतर है ।दोनों गावो के कुत्ते भोकते है ,शायद वो रास्ता जानते हैइस डूबी सड़क से निकलने का ।बीडी की फूंक पेट तक भरी हुई ,अगर उदर के लोथडे साथ देते तो पी जाता पुरा कोसीमुह से निकलता धुआ जिसमे कोसी की पल्वित करह है .पास ही मरे रिश्ते के शव को चाटता कुत्ता ,अभी भी प्यासा है ,कोसी की तरहघूरते -घूरते चीख पड़ता है मेरा कंठ उस सितारे परयह वही चमकता सितारा है ,मधुबनी ,सहरसा ,पुरनिया का जिसकी रौशनी मे ये मातमी सन्नाटा हांफ रहा है ,और पूछ रहा है मेरे हिस्से का भारत उदय कब हो रहा है

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Bhai khub likha hai. har shabd se sacchiee bayan ho rahee hai.